Tuesday, October 1, 2019

इत्मीनान से सुकून के साथ आज बहुत दिनों बाद
सुकून के साथ लौटी हूँ मुद्दत हो गई जब रूबरू नहीं हुए हम
आज लगा फिर कुछ लिख जाए
हम अपनों को अपनों की शाही में रंग जाए
हम हर शब्द को
अक्षर अक्षर को माला की तरह पीरो जाए
 हम आज फिर
 हम फ़िर हम कुछ लिख जाएं कोशिश करूंगी इस वादे के साथ कि रोज दिखे कुछ मैं सुनाओ कुछ आप सुनाएं
 हम शब्दों की एक माला बन जाए