इत्मीनान से सुकून के साथ आज बहुत दिनों बाद
सुकून के साथ लौटी हूँ मुद्दत हो गई जब रूबरू नहीं हुए हम
आज लगा फिर कुछ लिख जाए
हम अपनों को अपनों की शाही में रंग जाए
हम हर शब्द को
अक्षर अक्षर को माला की तरह पीरो जाए
हम आज फिर
हम फ़िर हम कुछ लिख जाएं कोशिश करूंगी इस वादे के साथ कि रोज दिखे कुछ मैं सुनाओ कुछ आप सुनाएं
हम शब्दों की एक माला बन जाए
सुकून के साथ लौटी हूँ मुद्दत हो गई जब रूबरू नहीं हुए हम
आज लगा फिर कुछ लिख जाए
हम अपनों को अपनों की शाही में रंग जाए
हम हर शब्द को
अक्षर अक्षर को माला की तरह पीरो जाए
हम आज फिर
हम फ़िर हम कुछ लिख जाएं कोशिश करूंगी इस वादे के साथ कि रोज दिखे कुछ मैं सुनाओ कुछ आप सुनाएं
हम शब्दों की एक माला बन जाए
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