Saturday, April 18, 2009

बचपन की यादे ताज़ा हो गयी

सब कुछ नया सा नया सा है । मम्मी के हाथ के खाने का स्वाद फिर तारो ताज़ा हो गया है । बचपन मे मम्मी को परेशान करते थे येः नही खायेगा वो नही खायेगा । बस घर से दूर क्या हुए । मै तो लाइन पर आ गयी बस जो मिल जाए वो खा लेती हु । पर आप सब की भी यही हालत हो गयी हो होगी । बस पेट भरने के लिए खाना खाते है । हम सभी लोग हो सकता रोजगार के कारण खाने का असली स्वाद भूलते जा रहे है । कभी कोई छुट्टी नही । बस जल्दी से खायो और ऑफिस को चले जायो । दिन भर काम करो काम नही भी है तो बस हाजरी के लिए ऑफिस जाऔ वरना एक दिन का पैसा काट है । हम लोग काम के साथ साथ बाकी सारे रिश्ते भूलते जा रहे है । मम्मी कहती है तुम लोगो को पाबंधियौ मे रहना पसंद नही अड्डा मारना अच्छा लगता है ख़ास कर इसलिए तो तुम मम्मी लोगो को साथ नही रखना नही चाहते हो । मम्मी जो भी कहे सुन लेती हु जवाब नही देते हु । यही तो अच्छी आदत है हम लोगो की । दिन भर लोगो के साथ रह कर सच हम लोग sudhar गए कितनी सारी चीज ऎसी है जो वक्त के साथ बदल जाती है शौक , रहन सहन और सबसे खास हम कुछ अपने काम तक ही सीमित रह गए है । और इतने दिनों बाद वो सुख मिला जिसके लिए तरस रही थी । आज कल मम्मी आयी हुई है । दिन ऎसे कट रहे है जैसे जो चाह वो मिल गया माँ का खाना खा खा कर बस यही लगता है कल से येः खाना फिर मुजसे कोसो दूर हो जाएगा । खाना खाने के लिया मुझे ख़ुद पकाना पड़ेगा । रह रह उनकी याद आएगी ।। चलो बात बताती हु । कल की । कल मेने टमाटर की चटनी और मेथी के परांठे खाए । ऐसा स्वाद जो कई दिनों तक मेरे जबान पर रहेगा । डेल्ही मे मम्मी के बिताये ये दिन हो सकता याद बन कर मरे एक कोने रह रह कर मम्मी के आने का इंतजार करेंगे । लडकिया हमेशा से ही इमौशनल होती है । मम्मी के sath हर दिन अच्छा लगा । लेकिन क्या करे काम जिंदगी है
पूजा है
तो करना ही पड़ेगा
घर

Thursday, April 16, 2009

चुनावी सरगर्मी

आज सभी अखबारों मे चुनावी सरगर्मी ही छाई हुई है। हर कोई लिख रहा है येः जीतेगा वो जीतेगा पर येः तो वक्त बतायेगा की जीता कोंन जीतेगा । सभी न्यूज़ पेपर का समीकरण है कौन बनेगा प्रधान मंत्री । येः सिलसिला तो हर बार चलता रहेगा । पर सोचने का विषय येः है की सरकार किसी की भी बने। आप और हम सोच समझ कर वोट जरूर करे क्योंकी हमारी सरकार हमी ने बनानी है सरकार का का हर रूप हम देखते है लेकिन जन को जगरूप होकर ही चलना होगा । आज नही तो कल आप raajneti की उठा pathak को समझ जायेंगे क्योंकी yuwaoo की bhagidari jitnee badage utna देश का भविष्य और jyada nikhraga । आप jyada achaa sae समझ jayegae की क्या क्या हो रहा है । क्योंकी आज kae yuwa जितना praticle है shayad ही कोई और हो । . yuwa rajniti kae जगत मे आप सभी का स्वागत है pehlae सोच समझ कर वोट जरूर dale ।
आप ही है
कल kae neta
आप ही पर है कल की jimaedariya
sambhalo गर्व sae अपनी jimeadaria
देश की हर खुशी
आप ही sae है

Wednesday, April 15, 2009

ये रिश्ता क्या कहलाता है..??

जब नए रिश्ते बनते है तो कई सारी चीजे आपकी समझ मे नही आतीं। आपको लगता है बहुत कुछ मिल रहा है। सच मे, मिलता तो बहुत कुछ है पर कुछ छूट भी जाता है। ऐसे में आपकी दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो जाती है।


कभी कोई अच्छा लगता है, तो कभी लगता है सबसे अच्छा रिश्ता होता है दोस्ती का। जो कुछ नही मांगता। उसमे सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनापन होता है। ये अपनापन ऐसा जो आपको खुशी दे।
आप मंद मंद मुस्कराते है लोग आपकी खुशी को प्यार से बाटते है। यही है वो रिश्ता जो आपको और हमको भी बाँधता है।


लेकिन कई रिश्ते आपको किसी काम को करने से रोके तो आपका मन भर जाता है। मन करता है पहले हम बिना दोस्त के ही अच्छे थे न कोई रोक न कोई टोक । लेकिन कभी न कभी हर लड़के और लडकी को समझौता करना पड़ता है। शायद इसी का नाम ज़िन्दगी है।

Saturday, April 11, 2009

मेरी ऐतिहासिक यात्रा

सुबह सुबह शुरू हुआ हमारा ऐतिहासिक सफर...घर के पुश्तैनी मंदिर का। मम्मी ने मुझे झकझोरकर उठाया। मैं सीधे तैयार हो गयी। बस फिर क्या था पूजा-वूजा की और फिर पहुच गए गाड़ी मे।


जो ड्राईवर था वो पंजाबी गाने सुन रहा था। उफ़ फिर क्या था... हमें भी वो ही सुनना पढ़ा और सारे सफर यही सुन रहे थे। मेरी तो आदत है गाड़ी मे बैठी नही कि सो पड़ी। मुझे मम्मी जी ने कहा, रात को क्या करोगी अभी इतना सो लोगी, तो रात को क्या करोगी?


फिर भी मेरी आंख जो बंद हुई.. तो बंद ही रही और बीच में जब-जब आख़ खुलती तो दूर दूर तक हरियाली ही हरियाली थी। अंतर्मन खुश हो गया। ऐसा लग रहा था कि आज का दिन रुक जाए । मेरी हर सुबह शाम यही शुरू हो और यही विराम ले।
बार-बार यही हरियाली मेरी नज़रों के आगे रहे। मैं हर रोज़ इस दिन की खुशी पाऊँ। जैसे कुछ तो हुआ है। देखा तो मन्दिर पहुंचने ही वाले थे।


बाबा का नाम है जटी वाले बाबा जो दिल्ली से लगभग १८० किलोमीटर दूर है। इसे कहते हैं छोटी पचेरी। गांव गोध बुलावा हरियाणा जो झूंझनूं नारनौल रोड में है। जैसे ही नीचे उतरे मैं फिर सो चुकी थी।


वहां बाबा हमारा इंतजार कर रहे थे। उनके पैर छुए। मम्मी ने २५ साल के बाद ये दर्शन किए थे। वो काफी खुश थी। फिर पहुंचे मशहूर प्रसिद्ध छिदवाड़ा जहां के पेड़े भारत मे मशहूर हैं। और वहां की लाख की चूड़ियां बस आपको अपनी और खींचती ही जाएगी और फिर आप उन्हें खरीदने चल ही पडेंगे। मम्मी जी ने कहा दाम खूब मोल-भाव के बाद लेना । लेकिन दुकानदारों की अकड़, इसी दाम पर दूंगा, लेना हो तो लो....बस दिमाग़ खराब हो गया। लेकिन हमारा पहले मंदिर पहुंचना ज़रूरी था। ऋद्धि-सिद्धि मंदिर जो झूंझनूं में है।


मंदिर से भी ज्यादा यादगार वो लम्हे थे जो मैंने मम्मी के साथ बिताए। अब बारी थी भोग की॥पेड़े खाने के बाद लगा सारी थकावट दूर हो गई। मम्मी घर से बनाकर खाना लाई थी वो खाया और फिर किसी रिश्तेदार के घर पहंचे। मैंने बड़ा-सा घूंघट कर रखा था। तीन पीढियां साथ थीं..ग्रेट कहने को दिल कर रहा था।


काश समय थम जाता।


यहां बहुत कुछ ऐसा हुआ है जो बहुत अच्छा लग रहा है । नई अर्चना ...नई सुबह ...कुछ नए रास्ते हैं जो तलाशने हैं॥ कुछ अपने हैं कुछ बहुत अपने सबके साथ मिल-जुलकर रहती है अर्चना। अपने अंतर्मन को सबसे बांटती है अर्चना ।

Monday, April 6, 2009

मेरे आज कल के दिन

आज हम इस बात से काफी खुश है की आज का दिन मरे लिए एक नयी शुरुआत का है हम आपको खुशी का कारण बताना चाहेगे आज हवा के साथ मेरा नया रिश्ता जुड़ा है मैने उस एहसास को छुआ है जिसने मुझे मेरी खुशबू से रु ब रु कराया है लिखते वक्त मुस्करा रही हु की आजकल मे खुली किताब की तरह अपना सारा हाल लिख देती हु पर खुश हु की आप लोग मुझे जान रहे हो

Sunday, April 5, 2009

आज पता नही मन क्यों बाहरी हो रहा है ऐसा लग रहा है की कितना सारा बोज लेकर जी रही हु
मेरी ये आदत है की थोडी खुशी मे खुश हो जाती हूँ और थोडी सी बात मे मन भर जाता है या ये कहू लड़किया ऐसी ही होती है पता नही अपने बारे मे तो अच्छे से जानती हूँ मेरा या मिजाज़ है
आज मन कर रहा है बस ऑफिस में ही रहू घर भी न जाऊ
किसी से बात करना का भी मन नही कर रहा है
आपने ही सवालो मे बस ,पता नही क्या कर रहा है
पर जो भी है ऐसे मे ऑफिस का भी कम निपटा रही हु
अकले बैठी थी ऐसा मे तृप्ति आकर चपर चपर करने लगी कभी तो खाने को नही पूछती और आज कल तो ज्यादा ही व्यस्त हो गई है
अल इंडिया रेडियो के इस फीचर उनिट आज मे बिल्कुल अकेली हु
मन्ना जी के साथ भक्ति उत्सव मे जाना है
स्टोरी फाइल करनी है
ऑफिस और काम लाइफ इसी का नाम है तो चलते है कवरेज के लिए बाकी का हाल सुनती रहूगी

Friday, April 3, 2009

पहला ब्लॉग लिख रही हु गलतिया होगी तौ माफ करना
कोशिश करुगी के अच्छा लिखू
आप सभी को पढने मे मज़ा आए और आप फिर से तारो ताज़ा हो जाए
एक बात जो हम कहना चाहते है वो येः की हम चाहते है की आप सब हमारा साथ दे क्योंकि आप सभी के साथ से हम उस डगर तक जन चाहते है जहा एक नयी दुनिया होगी
इसलिय आप सभी का स्वागत है हमारे ब्लॉग मे
आज कल खुशी का हर अहसास मेरे साथ है उड़ना चाहने से पहले ही पंख मुझे मिल गए हैं
मेरी हर उड़ान आजकल अपनी मंजिल नही धुन्धती । रस्तों की तलाश अब ऐसा लगता है थम गई।आजकल खुशबू की हर उड़ान मेरे से अपना घर का पता नही पूछती ,कुछ नया अहसास है मेरे साथ
मुझे कुछ किसी से नही कहना
मे अपने आप ही बहुत खुश हु आजकल
हर पल धन्यवाद कहना चाहती हु उस अलोकिक शक्ति को जो मेरा साथ है