Saturday, April 11, 2009

मेरी ऐतिहासिक यात्रा

सुबह सुबह शुरू हुआ हमारा ऐतिहासिक सफर...घर के पुश्तैनी मंदिर का। मम्मी ने मुझे झकझोरकर उठाया। मैं सीधे तैयार हो गयी। बस फिर क्या था पूजा-वूजा की और फिर पहुच गए गाड़ी मे।


जो ड्राईवर था वो पंजाबी गाने सुन रहा था। उफ़ फिर क्या था... हमें भी वो ही सुनना पढ़ा और सारे सफर यही सुन रहे थे। मेरी तो आदत है गाड़ी मे बैठी नही कि सो पड़ी। मुझे मम्मी जी ने कहा, रात को क्या करोगी अभी इतना सो लोगी, तो रात को क्या करोगी?


फिर भी मेरी आंख जो बंद हुई.. तो बंद ही रही और बीच में जब-जब आख़ खुलती तो दूर दूर तक हरियाली ही हरियाली थी। अंतर्मन खुश हो गया। ऐसा लग रहा था कि आज का दिन रुक जाए । मेरी हर सुबह शाम यही शुरू हो और यही विराम ले।
बार-बार यही हरियाली मेरी नज़रों के आगे रहे। मैं हर रोज़ इस दिन की खुशी पाऊँ। जैसे कुछ तो हुआ है। देखा तो मन्दिर पहुंचने ही वाले थे।


बाबा का नाम है जटी वाले बाबा जो दिल्ली से लगभग १८० किलोमीटर दूर है। इसे कहते हैं छोटी पचेरी। गांव गोध बुलावा हरियाणा जो झूंझनूं नारनौल रोड में है। जैसे ही नीचे उतरे मैं फिर सो चुकी थी।


वहां बाबा हमारा इंतजार कर रहे थे। उनके पैर छुए। मम्मी ने २५ साल के बाद ये दर्शन किए थे। वो काफी खुश थी। फिर पहुंचे मशहूर प्रसिद्ध छिदवाड़ा जहां के पेड़े भारत मे मशहूर हैं। और वहां की लाख की चूड़ियां बस आपको अपनी और खींचती ही जाएगी और फिर आप उन्हें खरीदने चल ही पडेंगे। मम्मी जी ने कहा दाम खूब मोल-भाव के बाद लेना । लेकिन दुकानदारों की अकड़, इसी दाम पर दूंगा, लेना हो तो लो....बस दिमाग़ खराब हो गया। लेकिन हमारा पहले मंदिर पहुंचना ज़रूरी था। ऋद्धि-सिद्धि मंदिर जो झूंझनूं में है।


मंदिर से भी ज्यादा यादगार वो लम्हे थे जो मैंने मम्मी के साथ बिताए। अब बारी थी भोग की॥पेड़े खाने के बाद लगा सारी थकावट दूर हो गई। मम्मी घर से बनाकर खाना लाई थी वो खाया और फिर किसी रिश्तेदार के घर पहंचे। मैंने बड़ा-सा घूंघट कर रखा था। तीन पीढियां साथ थीं..ग्रेट कहने को दिल कर रहा था।


काश समय थम जाता।


यहां बहुत कुछ ऐसा हुआ है जो बहुत अच्छा लग रहा है । नई अर्चना ...नई सुबह ...कुछ नए रास्ते हैं जो तलाशने हैं॥ कुछ अपने हैं कुछ बहुत अपने सबके साथ मिल-जुलकर रहती है अर्चना। अपने अंतर्मन को सबसे बांटती है अर्चना ।

1 comment:

  1. आपकी बाबाओं परक बड़ी आस्था है, हमें तो नहीं है। होने वाले रिश्तेदारों से मिलना सुखद और गुदगुदाने वाला होता है। कुछ रिश्ते आपको परविरा से मिलते हैं, कुछ आप खुद बनाते हैं, कुछ आपके परिवार वाले तय तो करत ेहैं लेकिन उसे चलाना आपको ही पड़ता है। आखिरी वाली कैटगरी वाला रिश्ता आपको गुदगुदाता है, एंडवेंचर्स होते हैं। ये तो निजी बात हुई। मंदिर और बाबा में आपकी आस्था कुछ ज्यादा ही है। धर्म को लेकर आप ज्यादा ही परंपरावादी लगती हैं.. गुस्ताखी माफ लेकिन मुझे धर्म के नशे से बेहतर सिगरेट का धुआँ लगता है। जिससे सिर्फ मेरा नुकसान हो सकता है अगर एकांत में पी जाए। धर्म सामूहिक ध्वंस का मसाला है, जो लोगों को बरगलाने के लिए है।

    सादर

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